श्री माता जो जगत जननी है
अर्जी वाली माता भोपाल 🌹🙏 _*श्री आद्या स्मरण*_🙏🌹
*_श्री माता श्री महाराज्ञी श्रीमत सिंहासनेश्वरी।_*
*_चिदग्नि कुण्ड सम्भूता देव कार्य समुद्भवा।।_* _श्री ललिता सहस्रनाम मन्त्र,,~~ 1_
🌺
_*श्री माता,* जो सर्व जननी है, *श्री महाराज्ञी,* जो समस्त राजाओ महाराजो ईश्वरो देवो देवियो की स्वामिनी राज राजेश्वरी महारानी है।
*श्री मदसिंहासनेश्वरी,* कोई भी सिंहासन (पद प्रतिष्ठा) उनसे बड़ी नही कोई भी सिंहासन उनके आसन से ऊंचा नही ओर अन्य सिंहासनों की भी स्वयं ही स्वामिनी है। केवल अपनी ही व्यवस्था को संचालित करने के लिये अलनी माया द्वारा ही रचे जिसने अन्य आत्माओ को ही देव विशेष के पद पर प्रतिष्ठित रखे है। अर्थात उन देवताओ को निमित्तमात्र रखकर जो स्वयं ही अखिलभुवन ब्रह्मांडो का संचालन करती है *चिदग्निकुण्ड, सम्भूता,* चिद का अर्थ होता है, जिसका कार्य नाम स्वरूप धाम आसन वैभव लौकिक या सांसारिक नही है। ज्ञान की अग्नि में अज्ञान की आहुति देने पर ही जो ज्योति स्वरूप में प्रगट होती है। *देवकार्य समुद्भवा,* जो साकार निराकार की मर्यादाओं से अत्यंत पर होते हुये भी कभी कभी भक्तो को आनन्द देने के लिये, धर्म संसार मे देवत्व की रक्षा के लिये ही प्रगट हो जाती है।
🌹🚩🌹🚩🌹
हम जितने भी देवी देवताओं के सहस्रनाम स्तोत्रों के नाम स्मरण करते तो उनमें जो उस स्तोत्र के जो प्रधान देवता होते है। उनका वह नाम विशेष होता है। बाद में सभी अन्य नामो को स्मरण किया जाता है।
श्री ललिता सहस्रनाम में एक विशेषता है,, की इसमे *ललिताम्बिका* नाम सबसे बाद में 1000 एक हजारवें नम्बर पर आया है। और *श्री माता* नाम सबसे पहले नम्बर पर आया है। अर्थात किसे अगर हजार नाम का ज्ञान न भी हो जो *माँ* शब्द ही बोलदे तो भी जगदम्बा प्रसन्न होजाती है। वस्तुतः _श्री आद्या_ तो माता भी है पिता भी तभी तो आरती में हम गाते है। *_तुमहि जगकी माता तुमहि हो भरता, भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता, ॐ जय अम्बे ---_*
लेकिन फिर भी जो जगदम्बा के मातृ स्वरूप की झांकी है। उसी रूप में ब्रह्मा विष्णु महेश भी उसी वात्सल्यमयी श्री माता छवि का ही नित्य ध्यान करते है।
*जय माता दी* संत श्री वेदान्त महाराज जी WhatsApp 9981293090
🌹
*_श्री माता श्री महाराज्ञी श्रीमत सिंहासनेश्वरी।_*
*_चिदग्नि कुण्ड सम्भूता देव कार्य समुद्भवा।।_* _श्री ललिता सहस्रनाम मन्त्र,,~~ 1_
🌺
_*श्री माता,* जो सर्व जननी है, *श्री महाराज्ञी,* जो समस्त राजाओ महाराजो ईश्वरो देवो देवियो की स्वामिनी राज राजेश्वरी महारानी है।
*श्री मदसिंहासनेश्वरी,* कोई भी सिंहासन (पद प्रतिष्ठा) उनसे बड़ी नही कोई भी सिंहासन उनके आसन से ऊंचा नही ओर अन्य सिंहासनों की भी स्वयं ही स्वामिनी है। केवल अपनी ही व्यवस्था को संचालित करने के लिये अलनी माया द्वारा ही रचे जिसने अन्य आत्माओ को ही देव विशेष के पद पर प्रतिष्ठित रखे है। अर्थात उन देवताओ को निमित्तमात्र रखकर जो स्वयं ही अखिलभुवन ब्रह्मांडो का संचालन करती है *चिदग्निकुण्ड, सम्भूता,* चिद का अर्थ होता है, जिसका कार्य नाम स्वरूप धाम आसन वैभव लौकिक या सांसारिक नही है। ज्ञान की अग्नि में अज्ञान की आहुति देने पर ही जो ज्योति स्वरूप में प्रगट होती है। *देवकार्य समुद्भवा,* जो साकार निराकार की मर्यादाओं से अत्यंत पर होते हुये भी कभी कभी भक्तो को आनन्द देने के लिये, धर्म संसार मे देवत्व की रक्षा के लिये ही प्रगट हो जाती है।
🌹🚩🌹🚩🌹
हम जितने भी देवी देवताओं के सहस्रनाम स्तोत्रों के नाम स्मरण करते तो उनमें जो उस स्तोत्र के जो प्रधान देवता होते है। उनका वह नाम विशेष होता है। बाद में सभी अन्य नामो को स्मरण किया जाता है।
श्री ललिता सहस्रनाम में एक विशेषता है,, की इसमे *ललिताम्बिका* नाम सबसे बाद में 1000 एक हजारवें नम्बर पर आया है। और *श्री माता* नाम सबसे पहले नम्बर पर आया है। अर्थात किसे अगर हजार नाम का ज्ञान न भी हो जो *माँ* शब्द ही बोलदे तो भी जगदम्बा प्रसन्न होजाती है। वस्तुतः _श्री आद्या_ तो माता भी है पिता भी तभी तो आरती में हम गाते है। *_तुमहि जगकी माता तुमहि हो भरता, भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता, ॐ जय अम्बे ---_*
लेकिन फिर भी जो जगदम्बा के मातृ स्वरूप की झांकी है। उसी रूप में ब्रह्मा विष्णु महेश भी उसी वात्सल्यमयी श्री माता छवि का ही नित्य ध्यान करते है।
*जय माता दी* संत श्री वेदान्त महाराज जी WhatsApp 9981293090
🌹
Post a Comment