ऐसे किया जाता है छठ महापर्व का व्रत, यहां पढ़ें शुभ मुहूर्त, विधि और मंत्र



ऐसे किया जाता है छठ महापर्व का व्रत, यहां पढ़ें शुभ मुहूर्त, विधि और मंत्र



चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व को छठ पूजा, छठी माई पूजा, डाला छठ, सूर्य षष्ठी पूजा और छठ पर्व के नामों से भी जाना जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व सूर्य देव की उपासना के लिए मनाया जाता है।

ताकि परिवारजनों को उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इसके अलावा संतान के सुखद भविष्य के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है। कहते है छठ पर्व का व्रत रखने से नि:संतानों को संतान भी प्राप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी छठ माई का व्रत रखा जाता है।
छठ पूजा 2018 : कार्तिक छठ 2018 11 नवंबर से 14 नवंबर तक मनाई जाएगी। जिसका पूर्ण विवरण इस प्रकार है।
13 नवंबर 2018, मंगलवार के दिन षष्ठी तिथि का आरंभ 01:50 मिनट पर होगा। जिसका समापन 14 नवंबर 2018, बुधवार के दिन 04:22 मिनट पर होगा।
यह महापर्व चार दिनों का होता है। जिसे नहाय खाय, लोहंडा या खरना, संध्या अर्ध्य और उषा अर्ध्य के रूप में मनाया जाता है।
11 नवंबर 2018 : रविवार : नहाय-खाय : चतुर्थी
12 नवंबर 2018 : सोमवार : लोहंडा और खरना : पंचमी
13 नवंबर 2018 : मंगलवार : संध्या अर्ध्य :षष्ठी
14 नवंबर 2018 : बुधवार : उषा अर्घ्य, पारण का दिन : सप्तमी

पहला दिन नहाय-खाय :
11 नवंबर 2018
छठ पर्व के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। इस दिन घर की साफ़ सफाई करके छठ व्रती स्नान कर पवित्र तरीके से शाकाहारी भोजन ग्रहण कर छठ व्रत की शुरुवात करते हैं। इस दिन को कद्दू-भात भी कहा जाता है। इस दिन व्रत के दौरान चावल, चने की दाल और कद्दू (घिया, लौकी) की सब्जी को बड़े नियम-धर्म से बनाकर प्रसाद रूप में खाया जाता है।
लोहंडा या खरना :
12 नवंबर 2018

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। छठ व्रती दिन भर उपवास करने के बाद शाम को भोजन करते हैं। जिसे खरना कहते हैं। खरना का प्रसाद चावल को गन्ने के रस में बनाकर या चावल को दूध में बनाकर और चावल का पिठ्ठा और चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। शाम के समय पूजा पाठ करने के बाद पहले छठ व्रती यह प्रसाद खाते हैं
उसके बाद घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद के रूप में वही भोजन मिलता है।
पहला अर्घ्य : 13 नवंबर 2018

तीसरे दिन दिनभर घर में चहल पहल का माहौल रहता है। व्रत रखने वाले दिन भर डलिया और सूप में नानाप्रकार के फल, ठेकुआ, लडुआ (चावल का लड्डू), चीनी का सांचा इत्यादि को लेकर शाम को बहते हुए पानी (तालाब, नहर, नदी, इत्यादि) पर जाकर पानी में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हुए परिवार के सभी सदस्य अर्घ्य देते हैं। और फिर शाम को वापस घर आते हैं। रात में छठ माता के गीत आदि गाए जाते हैं।
सुबह का अर्घ्य :
14 नवंबर 2018

चौथे और अंतिम दिन छठ व्रती को सूर्य उगने के पहले ही फिर से उसी तालाब, नहर, नदी पर जाना होता है जहां वे तीसरे दिन गए थे। इस दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए भगवान् सूर्य से प्रार्थना की जाती है। परिवार के अन्य सदस्य भी व्रती के साथ सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं और फिर वापस अपने घर को आते हैं।

छठ व्रती चार दिनों का कठिन व्रत करके चौथे दिन पारण करते हैं और प्रसाद का आदान-प्रदान कर व्रत संपन्न करते हैं। यह व्रत 36 घंटे से भी अधिक समय के बाद समाप्त होता है।


मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन है। इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने हेतु सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है। गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है। महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है। पांडवों की मां कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम था कर्ण। पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने हेतु छठ पूजा की थी।
यह पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तक चलता है। प्रथम दिन यानि चतुर्थी तिथि नहाय-खायके रूप में मनाया जाता है। आगामी दिन पंचमी को खरना व्रत किया जाता है और इस दिन संध्याकाल में उपासक प्रसाद के रूप में गुड-खीर, रोटी और फल आदि का सेवन करते हैं और अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं।

मान्यता है कि खरन पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न होती है और घर में वास करती है। छठ पूजा की अहम तिथि षष्ठी में नदी या जलाशय के तट पर भारी तादाद में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व का समापन करते हैं।
छठ पर्व महत्व
छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। हालांकि अब यह पर्व देश के कोने-कोने में मनाया जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भारत के सूर्यवंशी राजाओं के मुख्य पर्वों से एक था। एक समय मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से निजात पाने हेतु राज्य के शाकलद्वीपीय मग ब्राह्मणों ने सूर्य देव की उपासना की थी। फलस्वरूप राजा के पूर्वज को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिला और तभी से छठ पर सूर्योपासना की पूजा आरंभ हुई है।
छठ व्रत पूर्ण नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। श्रद्धा भाव से किए गए इस व्रत से नि:संतान को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। उपासक का जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है।

छठ व्रत की पूजा विधि

छठ पर्व में मंदिरों में पूजा नहीं की जाती है और ना ही घर में साफ़-सफाई की जाती है।

पर्व से दो दिन पूर्व चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन किया जाता है।
पंचमी को उपवास करके संध्याकाल में किसी तालाब या नदी में स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया जाता है। तत्पश्चात अलोना (बिना नमक का) भोजन किया जाता है।

षष्ठी के दिन प्रात:काल स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेते समय इन मंत्रों का उच्चारण करें।

ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।
पूरा दिन निराहार और नीरजा निर्जल रहकर पुनः नदी या तालाब पर जाकर स्नान किया जाता है और सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है।

अर्घ्य

अर्घ्य देने की भी एक विधि होती है। एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढक दें। तत्पश्चात दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥


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