दस महाविद्याओं के नाम और अद्भुपत रहस्य जानकर रह जाएंगे हैरान, पढ़ें पावन मंत्र भी
दस महाविद्याओं के नाम और अद्भुत रहस्य
जानकर रह जाएंगे हैरान, पढ़ें पावन मंत्र भी
।।या देवी
सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
हिन्दू धर्म में माता रानी का देवियों में
सर्वोच्च स्थान है। उन्हें अम्बे, जगदम्बे,
शेरावाली, पहाड़ावाली आदि नामों से पुकारा
जाता है। संपूर्ण भारत भूमि पर उनके सैंकड़ों मंदिर है। ज्योतिर्लिंग से ज्यादा
शक्तिपीठ है। सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती ये त्रिदेव की पत्नियां
हैं। इनकी कथा के बारे में पुराणों में भिन्न भिन्न जानकारियां मिलती है। पुराणों
में देवी पुराण देवी में देवी के रहस्य के बारे में खुलासा होता है।
आखिर उन अम्बा, जगदम्बा, सर्वेश्वरी आदि के
बारे में क्या रहस्य है? यह जानना भी जरूरी है। माता रानी के
बारे में संपूर्ण जानकारी रखने वाले ही उनका सच्चा भक्त होता है। हालांकि यह भी सच
है कि यहां इस लेख में उनके बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं दी जा सकती, लेकिन हम इतना तो बता ही सकते हैं कि आपको क्या क्या जानना चाहिए?
माता रानी कौन है? :
1. अम्बिका : शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने
कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प
उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की,
जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म।
परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर
विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस
पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है।
वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं)
कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता),
नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस
शक्ति की 8 भुजाएं हैं। पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना
प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है।
एकांकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव
की अर्द्धांगिनी हैं यह शक्ति जिसे जगदम्बा भी कहते हैं।
2. देवी दुर्गा : हिरण्याक्ष के वंश में उत्पन्न एक महा शक्तिशाली
दैत्य हुआ, जो रुरु का पुत्र था जिसका नाम दुर्गमासुर था।
दुर्गमासुर से सभी देवता त्रस्त हो चले थे। उसने इंद्र की नगरी अमरावती को घेर
लिया था। देवता शक्ति से हीन हो गए थे, फलस्वरूप उन्होंने
स्वर्ग से भाग जाना ही श्रेष्ठ समझा। भागकर वे पर्वतों की कंदरा और गुफाओं में
जाकर छिप गए और सहायता हेतु आदि शक्ति अम्बिका की आराधना करने लगे। देवी ने प्रकट
होकर देवताओं को निर्भिक हो जाने का आशीर्वाद दिया। एक दूत ने दुर्गमासुर को यह
सभी गाथा बताई और देवताओं की रक्षक के अवतार लेने की बात कहीं। तक्षण ही
दुर्गमासुर क्रोधित होकर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्र और अपनी सेना को साथ ले युद्ध
के लिए चल पड़ा। घोर युद्ध हुआ और देवी ने दुर्गमासुर सहित उसकी समस्त सेना को
नष्ट कर दिया। तभी से यह देवी दुर्गा कहलाने लगी।
3. माता सती : भगवान शंकर को महेश और महादेव भी कहते हैं। उन्हीं शंकर ने सर्वप्रथम दक्ष
राजा की पुत्री दक्षायनी से विवाह किया था। इन दक्षायनी को ही सती कहा जाता है।
अपने पति शंकर का अपमान होने के कारण सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर
अपनी देहलीला समाप्त कर ली थी। माता सती की देह को लेकर ही भगवान शंकर जगह-जगह
घूमते रहे। जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां
शक्तिपीठ निर्मित होते गए। इसके बाद माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालयराज के
यहां जन्म लेकर भगवान शिव की घोर तपस्या की और फिर से शिव को प्राप्त कर पार्वती
के रूप में जगत में विख्यात हुईं।
4. माता पार्वती : माता पार्वती शंकर की दूसरी पत्नीं थीं जो पूर्वजन्म में सती थी। देवी
पार्वती के पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। माता पार्वती को
ही गौरी, महागौरी, पहाड़ोंवाली और
शेरावाली कहा जाता है। माता पार्वती को भी दुर्गा स्वरूपा माना गया है, लेकिन वे दुर्गा नहीं है। इन्हीं माता पार्वती के दो पुत्र प्रमुख रूप से
माने गए हैं एक श्रीगणेश और दूसरे कार्तिकेय।
5. कैटभा : पद्मपुराण के अनुसार देवासुर संग्राम में मधु
और कैटभ नाम के दोनों भाई हिरण्याक्ष की ओर थे। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार उमा ने
कैटभ को मारा था, जिससे वे 'कैटभा'
कहलाईं। दुर्गा सप्तसती अनुसार अम्बिका की शक्ति महामाया ने अपने
योग बल से दोनों का वध किया था।
6. काली : पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शिव की चार पत्नियां थीं। पहली सती जिसने यज्ञ
में कूद कर अपनी जान दे दी थी। यही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनकर आई, जिनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं। फिर शिव की एक तीसरी फिर शिव की एक
तीसरी पत्नी थीं जिन्हें उमा कहा जाता था। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा गया
है। उत्तराखंड में इनका एकमात्र मंदिर है। भगवान शिव की चौथी पत्नी मां काली है।
उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था। काली माता ने ही असुर
रक्तबीज का वध किया था। इन्हें दस महाविद्याओं में से प्रमुख माना जाता है। काली
भी देवी अम्बा की पुत्री थीं।
7. महिषासुर मर्दिनी : नवदुर्गा में से एक कात्यायन ऋषि की कन्या ने ही
रम्भासुर के पुत्र महिषासुर का वध किया था। उसे ब्रह्मा का वरदान था कि वह स्त्री
के हाथों ही मारा जाएगा। उसका वध करने के बाद माता महिषसुर मर्दिनी कहलाई। एक अन्य
कथा के अनुसार जब सभी देवता उससे युद्ध करने के बाद भी नहीं जीत पाए तो भगवान
विष्णु ने कहा ने सभी देवताओं के साथ मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की
आराधना की जाए। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री
के रूप में प्रकट हुआ। हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं
ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं
पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया और
भयंकर युद्ध के बाद उसका वध कर दिया।
8. तुलजा भवानी और चामुण्डा
माता : देशभर में कई जगह
पर माता तुलजा भवानी और चामुण्डा माता की पूजा का प्रचलन है। खासकर यह महाराष्ट्र
में अधिक है। दरअसल माता अम्बिका ही चंड और मुंड नामक असुरों का वध करने के कारण
चामुंडा कहलाई। तुलजा भवानी माता को
महिषसुर मर्दिनी भी कहा जाता है। महिषसुर मर्दिनी के बारे में हम ऊपर पहले ही लिख आए हैं।
महिषसुर मर्दिनी भी कहा जाता है। महिषसुर मर्दिनी के बारे में हम ऊपर पहले ही लिख आए हैं।
9. दस महाविद्याएं : दस महाविद्याओं में से कुछ देवी अम्बा है तो कुछ
सती या पार्वती हैं तो कुछ राजा दक्ष की अन्य पुत्री। हालांकि सभी को माता काली से
जोड़कर देखा जाता है। दस महाविद्याओं ने नाम निम्नलिखित हैं। काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी,
भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और
कमला। कहीं कहीं इनके नाम इस क्रम में मिलते हैं:-1.काली,
2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी,
7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।
नवरात्रि : वर्ष में दो बार नवरात्रि उत्सव का आयोजन होता है। पहले को चैत्र नवरात्रि
और दूसरे को आश्विन माह की शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस तरह पूरे
वर्ष में 18 दिन ही दुर्गा के होते हैं जिसमें से शारदीय
नवरात्रि के नौ दिन ही उत्सव मनाया जाता है, जिसे दुर्गोत्सव
कहा जाता है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्रि शैव तांत्रिकों के लिए होती है। इसके
अंतर्गत तांत्रिक अनुष्ठान और कठिन साधनाएं की जाती है तथा दूसी शारदीय नवरात्रि
सात्विक लोगों के लिए होती है जो सिर्फ मां की भक्ति तथा उत्सव हेतु है।
नौ दुर्गा के नौ
मंत्र :-
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:।'
मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:।'
नवरात्रि व्रत : नवरात्रि में पूरे नौ दिनों के लिए शराब, मांस और
सहवास के साथ की अन्न का त्याग कर दिया जाता है। उक्त नौ दिनों में यदि कोई
व्यक्ति किसी भी तरह से माता का जाने या अंजाने अपमान करता है तो उसे कड़ी सजा
भुगतना होती है। कई लोगों को गरबा उत्सव के नाम पर डिस्को और फिल्मी गीतों पर
नाचते देखा गया है। यह माता का घोर अपमान ही है।
नवदुर्गा रहस्य : ये नवदुर्गा हैं- 1.शैलपुत्री
2.ब्रह्मचारिणी 3.चंद्रघंटा 4.कुष्मांडा 5.स्कंदमाता 6.कात्यायनी
7.कालरात्रि 8.महागौरी 9.सिद्धिदात्री। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती माता को
शैलपुत्री भी कहा जाता है। ब्रह्मचारिणी अर्थात जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव
को पाया था। चंद्रघंटा अर्थात जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है। ब्रह्मांड
को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कुष्मांडा कहा जाने लगा। उदर
से अंड तक वे अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, इसीलिए
कुष्मांडा कहलाती हैं। कुछ लोगों अनुसार कुष्मांडा नाम के एक समाज द्वारा पूजीत
होने के कारण कुष्मांड कहलाई। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है
इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न
होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिए वे कात्यायनी भी कहलाती
हैं। उल्लेखनीय है जिस तरह विष्णु के अवतार होते हैं उसी तरह माता के भी। कात्यायन
ऋषि की कन्या ने ही महिषासुर का वध किया था। उसका वध करने के बाद वे महिषसुर
मर्दिनी कहलाई। कत नमक एक विख्यात महर्षि थे, उनके पुत्र कात्य हुए तथा इन्हीं कात्य के गोत्र में प्रसिद्ध ऋषि
कात्यायन उत्पन्न हुए।
मां पार्वती देवी काल अर्थात हर तरह के
संकट का नाश करने वाली हैं, इसीलिए कालरात्रि कहलाती
हैं। माता का वर्ण पूर्णत: गौर अर्थात गौरा (श्वेत) है इसीलिए वे महागौरी कहलाती
हैं। हालांकि कुछ पुराणों अनुसार कठोरतप करने के कारण जब उनका वर्ण काला पड़ गया
तब शिव ने प्रसंन्न होकर इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह
विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।
जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है उसे वे हर प्रकार की सिद्धि दे
देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है।
सिंह और शेर : प्रत्येक देवी का वाहन अलग
अलग है। देवी दुर्गा सिंह पर सवार हैं तो माता पार्वती शेर पर। पार्वती के पुत्र
कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं उन्हें सिंह पर
सवार दिखाया गया है। कात्यायनी देवी को भी सिंह पर सवार दिखाया गया है। देवी
कुष्मांडा शेर पर सवार है। माता चंद्रघंटा भी शेर पर सवार है। जिनकी प्रतिपद और
जिनकी अष्टमी को पूजा होती है वे शैलपुत्री और महागौरी वृषभ पर सवारी करती है।
माता कालरात्रि की सवारी गधा है तो सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान है।
एक कथा अनुसार शिव को पति रूप में पाने
के लिए देवी पार्वती ने हजारों वर्ष तक तपस्या की। तपस्या से देवी सांवली हो गई।
भगवान शिव से विवाह के बाद एक दिन जब शिव पार्वती साथ बैठे थे तब भगवान शिव
ने पार्वती से मजाक करते हुए काली कह दिया। देवी पार्वती को शिव की यह बात चुभ
गई और कैलाश छोड़कर वापस तपस्या करने में लीन हो गई। इस बीच एक भूखा शेर देवी को
खाने की इच्छा से वहां पहुंचा। लेकिन तपस्या में लीन देवी को देखकर वह चुपचाप
बैठ गया।
शेर सोचने लगा कि देवी कब तपस्या से उठे
और वह उन्हें अपना आहार बना ले। इस बीच कई साल बीत गए लेकिन शेर अपनी जगह डटा
रहा। इस बीच देवी पार्वती की तपस्या पूरी होने पर भगवान शिव प्रकट हुए और पार्वती
गौरवर्ण यानी गोरी होने का वरदान दिया। इस बाद देवी पार्वती ने गंगा स्नान किया
और उनके शरीर से एक सांवली देवी प्रकट हुई जो कौशिकी कहलायी और गौरवर्ण हो जाने
के कारण देवी पार्वती गौरी कहलाने लगी। देवी पार्वती ने उस सिंह को अपना वाहन बना
लिया जो उन्हें खाने के लिए बैठा था। इसका कारण यह था कि सिंह ने देवी को खाने
की प्रतिक्षा में उन पर नजर टिकाए रखकर वर्षो तक उनका ध्यान किया था। देवी ने
इसे सिंह की तपस्या मान लिया और अपनी सेवा में ले लिया। इसलिए देवी पार्वती के
सिंह और वृष दोनों वाहन माने जाते हैं।
देवी का सम्प्रदाय : अम्बे या अम्बिका से संबंधित सभी देवियां का धर्म
शाक्त है। हिंदुओं के पांच सम्प्रदाय हैं- वैदिक, वैष्णव,
शैव, वैष्णव और स्मार्त। नाथ संप्रदाय को शैव
संप्रदाय का उप संप्रदाय माना जाता है। शाक्त सम्प्रदाय को देवी का सम्प्रदाय माना
जाता है। सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं।
शाक्त संप्रदाय प्राचीन संप्रदाय है। गुप्तकाल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और
मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका
प्रभाव कम हुआ।
शाक्त संप्रदाय को शैव संप्रदाय के
अंतर्गत माना जाता है। शाक्तों का मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण
है इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। दुनिया के सभी धर्मों
में ईश्वर की जो कल्पना की गई है वह पुरुष के समान की गई है। अर्थात ईश्वर पुरुष
जैसा हो सकता है किंतु शाक्त धर्म दुनिया का एकमात्र धर्म है जो सृष्टि रचनाकार को
जननी या स्त्रेण मानता है। सही मायने में यही एकमात्र धर्म स्त्रियों का धर्म है।
शिव तो शव है शक्ति परम प्रकाश है। हालाँकि शाक्त दर्शन की सांख्य समान ही है।
शक्ति का तीर्थ : माता के सभी मंदिर चमत्कारिक हैं। माता हिंगलाज, नैनादेवी,
ज्वालादेवी आदि के चमत्कार के बारे में सभी लोग जानते ही है।
51 या 52 शक्ति पीठों के अलावा माँ दुर्गा के सैंकड़ों प्राचीन मंदिर है। मां के
प्रसिद्ध मंदिरों में कोल्हापुर का तुलजा भवानी मंदिर, गुजरात
की पावागढ़ वाली माँ का शक्तिपीठ, विंध्यवासिनी धाम, पाटन देवी, देवास की तुलजा और चामुंडा माता, मेहर की माँ शरदा, कोलकाता की काली माता, जम्मू की वैष्णो देवी, उत्तरांचल की मनसा देवी,
नयना देवी, आदि।
शाक्त धर्म ग्रंथ : शाक्त सम्प्रदाय में
दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें 108 देवीपीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्तिपीठों
का खास महत्व है। इसी में दुर्गा सप्तशति है।
शाक्त धर्म का
उद्देश्य : सभी का उद्देश्य मोक्ष है फिर भी शक्ति
का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही
सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की हम सभी को
आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय
बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त
संप्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं।
सिद्धियां प्राप्त करते रहते हैं।
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