जानिए डोल ग्यारस पर्व का महत्व...
जानिए डोल ग्यारस पर्व का महत्व...
डोल ग्यारस पर्व हिन्दू
धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को
मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं इसीलिए यह 'परिवर्तनी एकादशी' भी कही जाती है। इसके अतिरिक्त यह
एकादशी 'पद्मा एकादशी' और 'जलझूलनी एकादशी' के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन
को व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
क्यों और
कब मनती हैं डोल ग्यारस :
डोल ग्यारस पर्व भादौ मास के शुक्ल पक्ष के 11वें
दिन मनाया जाता है। कृष्ण जन्म के 11वें दिन माता यशोदा ने
उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को 'डोल ग्यारस' के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती
है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर तरह-तरह की झांकी के साथ बड़े ही
हर्षोल्लास के साथ जुलूस निकाला जाता है। इस दिन भगवान राधा-कृष्ण के नयनाभिराम
विद्युत सज्जित डोल निकाले जाते हैं।
इस दिन
भगवान कृष्ण के बालरूप का जलवा पूजन किया गया था। माता यशोदा ने बालगोपाल कृष्ण को
नए वस्त्र पहनाकर सूरज देवता के दर्शन करवाए तथा उनका नामकरण किया। इस दिन भगवान
कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था। उसी प्रकार आज भी कई स्थानों पर इस
दिन मेले एवं झांकियों का आयोजन किया जाता है। माता यशोदा की गोद भरी जाती है।
कृष्ण भगवान को डोले में बिठाकर झांकियां सजाई जाती हैं। कई कृष्ण मंदिरों में
नाट्य-नाटिका का आयोजन भी किया जाता है।
डोल
ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि
से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति
से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी
वजह से इसे 'वामन ग्यारस' भी कहा जाता
है।
यशोदा-कृष्ण
:
देवकी के
पुत्र भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी के गर्भ से मथुरा के राजा कंस के कारागार में
हुआ। कंस से रक्षा करने के लिए जब वासुदेव कृष्ण को जन्म के बाद आधी रात में ही
उन्हें यशोदा के घर गोकुल में छोड़ आए तो उनका का पालन-पोषण माता यशोदा ने किया।
उनके जन्म के 11वें
दिन उनका जलवा पूजन किया गया, जो आज भी डोल ग्यारस के नाम से
जगप्रसिद्ध है।
बालकृष्ण
गोपाल द्वारा यशोदा मैया को ब्रह्मांड के दर्शन कराना, माखन चोरी और उसके आरोप
में ओखल से बांध देने आदि घटनाओं का प्रमुखता से वर्णन किया जाता है। भगवान
श्रीकृष्ण ने माखन लीला, ऊखल बंधन, कालिया
उद्धार, पूतना वध, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन
धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख
दिया। श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे मां के सामने रूठने की लीलाएं
करने वाले बालकृष्ण हैं, तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने
वाले योगेश्वर कृष्ण।
मेले का
आयोजन :
डोल
ग्यारस को राजस्थान में 'जलझूलनी एकादशी' कहा जाता है। इस अवसर पर गणपति पूजा,
गौरी स्थापना की जाती है। इस शुभ तिथि पर यहां पर कई जगहों पर मेलों
का आयोजन भी किया जाता है। मेले में ढोलक और मंजीरों का एकसाथ बजना समां बांध देता
है। इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है।
सायंकाल इन मूर्तियों को वापस लाया जाता है। अलग-अलग शोभायात्राएं निकाली जाती हैं
जिसमें भक्तजन भजन, कीर्तन, गीत गाते
हुए खुश होकर डोल ग्यारस की खुशियां मनाते हैं।
महत्व :
डोल
ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। डोल
ग्यारस के विषय में यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के
वस्त्र धोए थे। इसी कारण से इस एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' भी कहा जाता है।
इसके प्रभाव से सभी दु:खों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु एवं बालकृष्ण के
रूप की पूजा की जाती है जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता है।
जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।
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