कहीं, आपके भी मन में तो नहीं मरे पड़े हैं तीन श्वान
कहीं, आपके भी मन में तो नहीं मरे
पड़े हैं तीन श्वान
शरीर नामक गांव के अंतःकरण के कुएं
में ये काम, क्रोध और लोभ के तीन श्वान लड़ते
झगड़ते गिर गए हैं।
एक बार एक गांव में पंचायत लगी थी।
वहीं थोड़ी दूरी पर एक संत ने अपना बसेरा किया था। जब पंचायत किसी निर्णय पर नहीं
पहुच सकी,
तो किसी ने कहा कि क्यों न हम महात्मा जी के पास अपनी समस्या को
लेकर चलें अतः सभी संत के पास पहुंचे।
जब संत ने गांव के लोगों को देखा तो
पुछा कि कैसे आना हुआ? लोगों ने कहा,
“महात्मा जी गांव में एक ही कुआं है और कुंए का पानी हम नहीं पी
सकते, बदबू आ रही है। मन भी नहीं होता पानी पीने को।”
संत ने पूछा- हुआ क्या?
पानी क्यों नहीं पी सकते हो? लोग बोले- तीन
श्वान लड़ते लड़ते उसमें गिर गए थे। बाहर नहीं निकल सके और उसी में मर गए। अब जिसमें
श्वान मर गए हों, उसका पानी कौन पिये, महात्मा
जी?
संत ने कहा - एक काम करो ,उसमें गंगाजल डलवाओ। तो कुएं में गंगाजल भी आठ दस बाल्टी डाल दिया गया।
फिर भी समस्या जस की तस बनी रही।
लोग फिर से संत के पास पहुंचे। अब
संत ने कहा कि भगवान की कथा कराओ। लोगों ने कहा- ठीक है। कथा हुई,
फिर भी समस्या जस की तस। लोग फिर संत के पास पहुंचे। अब संत ने कहा,
उसमें सुगंधित द्रव्य डलवाओ।
सुगंधित द्रव्य डाला गया,
नतीजा फिर वही रहा। ढाक के तीन पात। बदबू अभी भी कुएं के पानी से
नहीं गई।
लोग फिर संत के पास पहुंचे,
तो अब संत खुद चलकर कुएं को देखने के लिए आए।
लोगों ने कहा- महाराज! वही हालत है,
हमने सब करके देख लिया। गंगाजल भी डलवाया, कथा
भी करवाई, प्रसाद भी बांटा और उसमें सुगंधित पुष्प और बहुत
चीजें डालीं।
अब संत आश्चर्यचकित हुए कि अभी भी
इनका मन कैसे नहीं बदला और पानी से अभी भी बदबू क्यों आ रही है?
तो संत ने पूछा- कि तुमने और सब तो
किया,
वे तीन श्वान जो मरे पड़े थे, उन्हें निकाला या
नहीं?
लोग बोले - उनके लिए न आपने कहा था,
न हमने निकाला, बाकी सब किया। वे तो वहीं के
वहीं पड़े हैं।
संत बोले - जब तक उन्हें नहीं
निकालोगे,
इन उपायों का कोई लाभ नहीं होगा।
बात यह है कि हमारे आपके जीवन की यह
कहानी है। इस शरीर नामक गांव के अंतःकरण के कुएं में ये काम,
क्रोध और लोभ के तीन श्वान लड़ते झगड़ते गिर गए हैं। इन्हीं की सारी
बदबू है।
हम उपाय पूछते हैं,
तो लोग बताते हैं, तीर्थयात्रा कर लो, थोड़ी पूजा करो, थोड़ा पाठ करो, थोड़ा यह कर लो, थोड़ा वह कर लो। सब करते हैं,
पर बदबू उन्हीं दुर्गुणों की आती रहती है। तो पहले इन्हें निकाल कर
बाहर करें, तभी जीवन उपयोगी होगाl
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