प्रदोष व्रत क्या है और कितने प्रदोष होते हैं, तथा प्रदोष रखने के फायदे
प्रदोष व्रत क्या है और कितने प्रदोष होते हैं, तथा प्रदोष रखने के फायदे
हिन्दू
धर्म में एकादशी को विष्णु से तो प्रदोष को शिव से जोड़ा गया है।
हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है। आपका ईष्ट कोई भी आप यह दोनों ही व्रत रख सकते हैं।
जरूरी नहीं है कि प्रदोष रखते वक्त शिव की ही उपासना करें।
प्रदोष
को प्रदोष कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है। संक्षेप में यह कि चंद्र को क्षय रोग था, जिसके चलते उन्हें मृत्युतुल्य
कष्टों हो रहा था। भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें त्रयोदशी के दिन
पुन:जीवन प्रदान किया अत: इसीलिए इस दिन को प्रदोष कहा जाने लगा।
प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकदशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं। त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
प्रदोष
व्रत फल : हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है।
अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। सोमवार का प्रदोष,
मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का
महत्व और लाभ अलग अलग है।
रविवार : जो प्रदोष रविवार के
दिन पड़ता है उसे भानुप्रदोष या रवि प्रदोष कहते हैं। इस दिन नियम पूर्वक व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और लंबी आयु प्राप्त होती है। रवि प्रदोष का संबंध सीधा सूर्य से
होता है। अत: चंद्रमा के साथ सूर्य भी आपके जीवन में सक्रिय रहता है। यह सूर्य से
संबंधित होने के कारण नाम, यश और सम्मान भी दिलाता है। अगर
आपकी कुंडली में अपयश के योग हो तो यह प्रदोष करें। रवि प्रदोष रखने से सूर्य
संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती है।
सोमवार : सोमवार को त्रयोदशी
तिथि आने पर इसे सोम प्रदोष कहते हैं। यह व्रत रखने से इच्छा अनुसार फल प्राप्ति
होती है। जिसका चंद्र खराब असर दे रहा है उनको तो यह प्रदोष जरूर नियम पूर्वक
रखना चाहिए जिससे जीवन में शांति बनी रहेगी। अक्सर लोग संतान प्राप्ति के लिए यह
व्रत रखते हैं।
मंगलवार
: मंगलवार को आने वाले
इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। इस दिन स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से
मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा
मिल जाता है।
बुधवार : इस दिन को आने वाले
प्रदोष को सौम्यवारा प्रदोष भी कहा जाता है यह शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए
किया जाता है। साथ ही यह जिस भी तरह की मनोकामना लेकर किया जाए उसे भी पूर्ण करता
है। यदि आपमें ईष्ट प्राप्ति की इच्छा है तो यह प्रदोष जरूर रखें।
गुरुवार
: इस गुरुवारा प्रदोष
कहते हैं। इससे आपक बृहस्पति ग्रह शुभ प्रभाव तो देता ही है साथ ही इसे करने से
पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश
के लिए किया जाता है। यह हर तर की सफलता के लिए भी रखा जाता है।
शुक्रवार
: इसे भ्रुगुवारा
प्रदोष कहा जाता है। जीवन में सौभाग्य की वृद्धि हेतु यह प्रदोष किया जाता है।
सौभाग्य है तो धन और संपदा स्वत: ही मिल जाती है। इससे जीवन में हर कार्य में
सफलता भी मिलती है।
शनिवार : शनि प्रदोष से पुत्र की प्राप्ति होती है। अक्सर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पदोन्नति की प्राप्ति के लिए करते हैं।
शनिवार : शनि प्रदोष से पुत्र की प्राप्ति होती है। अक्सर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पदोन्नति की प्राप्ति के लिए करते हैं।
नोट : रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि
होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। सर्वकार्य सिद्धि हेतु शास्त्रों में कहा गया
है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत
करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य और शीघ्रता से पूर्ण होती है।
प्रदोष रखने से आपका चंद्र ठीक होता है। अर्थात शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है। माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है। मानसिक बैचेनी खत्म होती है।
प्रदोष रखने से आपका चंद्र ठीक होता है। अर्थात शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है। माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है। मानसिक बैचेनी खत्म होती है।
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