श्रावण मास:शिव उपासना से होगी मनचाहे फल की प्राप्ति..!!!


श्रावण मास:शिव उपासना से होगी मनचाहे फल की प्राप्ति..!!!     
                                                                                         
गुरु पूर्णिमा के बाद श्रावण माह की शुरुआत हो जाती है और इस मास का समापन रक्षाबंधन के दिन होगा। शास्त्रों में बताया गया है कि सावन माह भगवान शिव का माह है। हिन्दी पंचांग के सभी बारह महीनों में श्रावण मास का विशेष महत्व माना जाता है, क्योंकि ये शिवजी की भक्ति का महीना है। श्रावण मास को सावन माह भी कहते है।
धार्मिक पुराणों के अनुसार श्रावण मास में शिवजी को एक बिल्वपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है।सावन के महीने के बारे में कहते है जो भक्त पूरे सावन महीने उपवास नहीं कर सकते वे श्रावण मास के सोमवार का व्रत कर सकते हैं। सोमवार के समान ही प्रदोष का महत्व है। इसलिए श्रावण में सोमवार व प्रदोष में व्रत जरूर रखें। श्रावण मास में शिव-पार्वती का पूजन बहुत फलदायी होता है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में सावन मास का   बहुत महत्व है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। सावन महीने में सोमवार के दिन श्रद्धालु शिवालयों में जाकर भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। सावन मास के सोमवार को भगवान शिव के अभिषेक का विशेष महत्व होता है। सोमवार के दिन शिव की आराधना को सर्वसुलभ माना गया है।आपकी हर इच्छा पूरी जीवन के संहारक भगवान शिव पूरी करेंगे।
सोमवार को बाबा भोलेनाथ का दुग्धाभिषेक व उस दिन व्रत रखने तथा श्रद्धा भाव से पूजन अर्चन करने वाले आस्थाववानों की मनोकामनाएं भगवान शिव पूरी करते हैं ऐसा शास्त्रों में भी उल्लेकखित है। श्रावण मास में बाबा को भांग, बेल पत्र और दूध चढ़ाने से मनवांक्षित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही गरीबों को दान देने से पुण्य फल मिलता है। हालांकि महादेव चूंकि बड़े ही भोले माने जाते हैं इसलिए मात्र सच्चे मन से शिवलिंग पर जल चढ़ाकर उन्हें रिझाया जा सकता है।यह माह आशाओं की पूर्ति का समय होता है। श्रावण में शिव भक्तों के लिए भगवान शिव का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इस महीने में शिव उपासना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।॥ जय महाकाल ॥




















क्यों है सावन की विशेषता? :- हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।     
               
सावन में शिवशंकर की पूजा :-  सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

महादेव का अभिषेक :-  महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।  




 बेलपत्र और समीपत्र :-  भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है 
बेलपत्र ने दिलाया वरदान :  बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। सावन महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।  इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहाँ वह बेलपत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।   

 


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