जानिये "ऊँ" ओ३म् : क्या है ओम का अर्थ
जानिये "ऊँ" ओ३म् : क्या है ओम का अर्थ
ॐ की
सार्थकता को व्यक्त करने से पूर्व इसके अर्थ का बोध होना अत्यंत आवश्यक है. ॐ की
ध्वनि संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है जो जीवन की शक्ति है जिसके होने से शब्द
को शक्ति प्राप्त होती है यही 'ॐ का रूप है.
ॐ का
उच्चारण तीन ध्वनियों से मिलकर बना यह है इन ध्वनियों का अर्थ वेदों में व्यक्त
किया गया है जिसके अनुसार इसका उच्चारण किया जाता है. ध्यान साधना करने के लिए इस
शब्द को उपयोग में लाया जाता है.
सर्वत्र
व्याप्त इस ध्वनि को ईश्वर के समानार्थ माना गया है यही उस निराकार अंतहीन में
व्याप्त है. ॐ को जानने का अर्थ है ईश्वर को जान लेना. समस्त वेद ॐ के महत्व की
व्याख्या करते हैं. अनेक विचारधाराओं में ॐ की प्रतिष्ठा को सिद्ध किया गया है.
परमात्मा
की स्तुति सृष्टि, स्थिति
और प्रलय का संपादन इसी ॐ में निहीत है. सत् चित् आनंद की अनुभूति भी इसी के
द्वारा संभव है. समस्त वैदिक मंत्रों का उच्चारण ॐ द्वारा ही संपन्न होता है.
वेदों की ऋचाएं, श्रुतियां
ॐ के उच्चारण के बिना अधूरी हैं. भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक शांति का
सूचक मंत्र है यह ॐ. '
प्राण
तत्व का उल्लेख करते हुए ॐ की ध्वनियों के साथ प्राण के सम्बन्ध को दर्शाया जाता
है.
ॐ को
अपनाकर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है. साधना तपस्या के द्वारा ॐ का चिन्तन करके
व्यक्ति अपने सहस्त्रो पापों से मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष को प्राप्त करता है.
इसे प्रणव मंत्र भी कहा जाता है. यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है और संपूर्ण
ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है इसका न आरंभ है न अंत. तपस्वी और साधक सभी इसी को
अपनाते हुए प्रभु की भक्ति में स्वयं को मग्न कर पाते हैं. जो भी ॐ का उच्चारण
करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है. ऊँ शब्द अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों से मिलकर
बना है जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु
और महेश का प्रतीक भी कहा जाता है.
ॐकार
बारह कलाओं से युक्त माना गया है इसकी सभी मात्राएं महत्वपूर्ण अर्थों को व्यक्त
करती हैं. इसकी बारह कलाओं की मात्राओं में पहली मात्रा घोषिणी है, दूसरी मात्रा विद्युन्मात्रा, तीसरी पातंगी, चौथी वायुवेगिनी, पांचवीं नामधेया, छठी को ऐन्द्री, सातवीं वैष्णवी, आठवीं शांकरी, नौवीं महती, दसवीं धृति, ग्यारहवीं मात्रा नारी और
बारहवीं मात्रा को ब्राह्मी नाम दिया गया है. ॐ को अनुभूति से युक्त करने के लिए
साधक अ एवं म अक्षर को पाकर ॐ को अपने भीतर आत्मसात करता है. प्रारम्भिक अवस्था
में विभिन्न ॐ स्वरों में सुनाई पड़ती है परंतु धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा इसके भेद
को समझा जा सकता है. आरंभ में यह ध्वनि समुद्र, बादलों तथा झरनों से उत्पन्न
ध्वनियों जैसी सुनाई पड़ती है लेकिन बाद में यह ध्वनि नगाड़े व मृदंग के शोर की
ध्वनि सुनाई पड़ती है. और अन्त में यह यह मधुर तान जैसे बांसुरी एवं वीणा जैसी
सुनाई पड़ती है.
ॐ के
चिन्तन मनन द्वारा समस्त परेशानियों से मुक्त हो चित को एकाग्र करके साधक भाव में
समाने लगता है. इसमें लीन व्यक्ति विषय वासनाओं से दूर रहता है और परमतत्त्व का
अनुभव करता है. अनेक धार्मिक क्रिया कलापों में 'ॐ' शब्द का उच्चारण होता है, जो इसके महत्व को प्रदर्शित
करता है. प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड के सृजन के पहले यह मंत्र
ही संपूर्ण दिशाओं में व्याप्त रहा है सर्वप्रथम इसकी ध्वनि को सृष्टि का प्रारंभ
माना गया है. ॐ के महत्व को अन्य धर्मों ने भी माना है. ॐ से के उच्चारण से मन, मस्तिष्क में शांति का संचार
होता है ॐ के
विविध अंगों का पूर्ण रूप से विवेचन एवं विश्लेषण किया गया है. जिसमें ॐ की
मात्राएं इसकी सार्थकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है यह एक रहस्यात्मक ज्ञान
है जिसे जो सहज भाव द्वारा ग्रहण कर सकता है वही परम सत्य को जान सकता है.
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