ध्यान योग: प्रायोगिक नियम और सूत्र
संत श्री वेदांत महाराज जी
ध्यान योग: प्रायोगिक नियम और सूत्र
ध्यान और ध्यान के मानसिक केंद्रीयकरण को किसी लक्ष्य से जोड़ने के लिए आवश्यक शर्तें हैं। उनको जानना ज़रूरी है। इन्हें जाने बिना सफलता नहीं मिलेगी, चाहे कितना भी परिश्रम कर लें।
एक सबसे पहली बात यह है की आप हर प्रकार के पूर्वाग्रह से मुक्त हो। हो सकता है की आपको बहुत सा शास्त्रीय ज्ञान हो और आपको धर्मालय की यह सरल प्रयोग विधियाँ अविश्वसनीय लगती हो; पर ज्ञान की प्राप्ति किसी भी क्षेत्र की हो, पूर्वाग्रह से मुक्त होने पर ही होती है। पहले तीर्थ यात्राएं इतनी कठिन थी, कोई वापस लौट कर नहीं आता था, परन्तु आज वे सरल हो गयी है। शास्त्र ज्ञान यहाँ आपको दुर्गम पदयात्रा में डाल देगा।
यह भी मस्तिष्क से निकाल दें की आध्यात्मिक सिद्धियों या अन्तरमुखी चेतना को विकसित करने के लिए या आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए कोई और नियम है और भौतिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए कोई और नियम। अर्जुन को तीर का निशाना लगाने के लिए भी द्रोणाचार्य ने वही नियम बताये थे , जो चेतना को अन्तर मुखी करने या सिद्धि प्राप्त करने के लिए होते है। प्राचीन काल में जुडो-कराटे , कुंग-फू में भी चीन के आचार्य ध्यान योग के ही सूत्रों का प्रयोग करते थे। ध्यान योग से ही संजय धृतराष्ट्र को महाभारत की कथा सुना रहे थे और ध्यान योग से ही एकलव्य ने बिना गुरु तीरंदाजी की सिद्धि प्राप्त की थी।
यह यहीं तक सीमित नहीं है। गीत-संगीत , कविता, शिक्षा, नृत्य, पूजा से लेकर रसोई बनाने से लेकर शरबत बनाने तक में इन्हीं नियमों का प्रयोग होता है।
‘कामना’ सबकी अलग-अलग होती है, पर उस कामना की पूर्ती के नियम सबके लिए एक हैं। जो अभ्यास में नहीं है, उसके लिए अधिक मानसिक अभ्यास करना पड़ता है, पर नियम वही रहते है। शेर भी इन्हीं नियमों से शिकार करता है और बिल्ली भी चूहे को इन्हीं नियमों से पकड़ती है। इस प्रकृति में परमात्मा ने सबके लिए अलग अलग नियम नहीं बनाये हैं। इसीलिए इन्हें सनातन धर्म (शाश्वत नियम) कहा जाता है।
जिस कार्य का अभ्यास होता है, वह सरल होता है; पर जिसका अभ्यास नहीं होता , उसको करने में बहुत परिश्रम करना पड़ता है, बार-बार असफलता मिलती है, लगता है की यह होगा ही नहीं, थकावट होती है , कभी-कभी निराशा भी होती है; पर सनातन सूत्र कहता है की असंभव कुछ भी नहीं है।मेढ़क और मगरमच्छ स्थलीय प्राणी हुआ करते थे, पर आज वे जलचर की तरह जल में रहते है । हमारे वैज्ञानिक आविष्कार ये बता रहे है की असंभव कुछ भी नहीं है। बस लगता है। यदि आपने कोई लक्ष्य बनाया है, तो मस्तिष्क की विचार और तर्क शक्ति , उस कार्य का मानसिक –शारीरिक अभ्यास आपको मंजिल तक पहुंचा देगा, यदि आप में वहाँ तक पहुँचने की व्याकुलता बनी रहे और धैर्य एवं संकल्प बना रहे।
अब यहाँ कई नियम औए सूत्र सामने आ जाते है –
एक ही लक्ष्य
लक्ष्य की प्राप्ति की प्रबल व्याकुलता
मस्तिष्क का मार्ग दर्शन
मानसिक एकाग्रता (व्याकुलता स्वयं इसमें अभ्यास कराने लगती है)
अभ्यास (बार-बार भजो)
धैर्य की दृढ़ता – यह विश्वास की दृढ़ता के साथ धीरज है।
संकल्प की दृढ़ता – यह ऊपर से ही सम्बन्धित है।
अभ्यास की नियमितता (यह क्रमांक V से ही सम्बन्धित है)
गुरु –
आवश्यक नहीं कि यह कोई मनुष्य ही हो। सिद्धि साधना के प्रभाग में मैंने इस पर विस्तृत प्रकाश डाला है।गुरु पुस्तकें हो सकती है, इन्टरनेट हो सकती है, कोई घटना हो सकती है, कोई भावनात्मक ठोकर हो सकती है, सपने में या ध्यान के प्रयोग के समय कोई दिव्य शक्ति भी हो सकती है।
पर सबसे पहला और महत्वपूर्ण गुरु शिव-पार्वती है। उनकी कृपा के बिना सारे गुरु, सारी उपलब्धियां , सारी शक्ति बेकार है। यह कोई अंधी आस्था का सत्य नहीं है। ये दोनों आपके मस्तिष्क के मध्य में स्थित है और प्रेरणा एवं मार्ग दर्शन यहाँ से मिलता है। यह वह शक्ति है , जो किसी को आइन्स्टाइन बना देती है, तो किसी को महाऋषि गौतम। आपकी कामना के औचित्य का निष्कर्ष देकर आपको भला-बुरा बताने वाला , आपकी कामना की पूर्ती का मार्ग बताने वाला, आपकी समस्याओं को सुलझाकर रास्ता दिखाने वाला , आपको आपकी कामना, व्याकुलता, अभ्यास के अनुसार शक्ति देने वाला महा शक्तिवान अपनी महाशक्ति के साथ यहाँ है। आप अपनी किसी भी कामना की पूर्ती की पूरी प्रक्रिया का अध्ययन कीजिये। आपको इस शाश्वत सत्य का ज्ञान हो जायेगा। यही आप को समस्त स्रोतों का ज्ञान कराता है, जिनके द्वारा आपकी कामना की पूर्ती हो सकती है।
किसी मानवीय गुरु की तलाश और उसकी कृपा प्राप्ति के मार्ग भी यही बताता है।
इसलिए समस्त तन्त्रचार्यों एवं सिद्धि –साधकों ने इन्हें ही पहला और सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुरु माना है।
इन नौ को यद् रखिये और ध्यान योग के द्वारा किसी भी कामना की पूर्ती कीजिये।
एक का अभ्यास दूसरी कामना को भी सरल बना देता है। इसलिए जब हम परा शक्ति पर अभ्यास करते हैं , तो भौतिक कामनाएं भी सरलता से पूरी होने लगती है।
ध्यान योग: प्रायोगिक नियम और सूत्र
ध्यान और ध्यान के मानसिक केंद्रीयकरण को किसी लक्ष्य से जोड़ने के लिए आवश्यक शर्तें हैं। उनको जानना ज़रूरी है। इन्हें जाने बिना सफलता नहीं मिलेगी, चाहे कितना भी परिश्रम कर लें।
एक सबसे पहली बात यह है की आप हर प्रकार के पूर्वाग्रह से मुक्त हो। हो सकता है की आपको बहुत सा शास्त्रीय ज्ञान हो और आपको धर्मालय की यह सरल प्रयोग विधियाँ अविश्वसनीय लगती हो; पर ज्ञान की प्राप्ति किसी भी क्षेत्र की हो, पूर्वाग्रह से मुक्त होने पर ही होती है। पहले तीर्थ यात्राएं इतनी कठिन थी, कोई वापस लौट कर नहीं आता था, परन्तु आज वे सरल हो गयी है। शास्त्र ज्ञान यहाँ आपको दुर्गम पदयात्रा में डाल देगा।
यह भी मस्तिष्क से निकाल दें की आध्यात्मिक सिद्धियों या अन्तरमुखी चेतना को विकसित करने के लिए या आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए कोई और नियम है और भौतिक लक्ष्य की सिद्धि के लिए कोई और नियम। अर्जुन को तीर का निशाना लगाने के लिए भी द्रोणाचार्य ने वही नियम बताये थे , जो चेतना को अन्तर मुखी करने या सिद्धि प्राप्त करने के लिए होते है। प्राचीन काल में जुडो-कराटे , कुंग-फू में भी चीन के आचार्य ध्यान योग के ही सूत्रों का प्रयोग करते थे। ध्यान योग से ही संजय धृतराष्ट्र को महाभारत की कथा सुना रहे थे और ध्यान योग से ही एकलव्य ने बिना गुरु तीरंदाजी की सिद्धि प्राप्त की थी।
यह यहीं तक सीमित नहीं है। गीत-संगीत , कविता, शिक्षा, नृत्य, पूजा से लेकर रसोई बनाने से लेकर शरबत बनाने तक में इन्हीं नियमों का प्रयोग होता है।
‘कामना’ सबकी अलग-अलग होती है, पर उस कामना की पूर्ती के नियम सबके लिए एक हैं। जो अभ्यास में नहीं है, उसके लिए अधिक मानसिक अभ्यास करना पड़ता है, पर नियम वही रहते है। शेर भी इन्हीं नियमों से शिकार करता है और बिल्ली भी चूहे को इन्हीं नियमों से पकड़ती है। इस प्रकृति में परमात्मा ने सबके लिए अलग अलग नियम नहीं बनाये हैं। इसीलिए इन्हें सनातन धर्म (शाश्वत नियम) कहा जाता है।
जिस कार्य का अभ्यास होता है, वह सरल होता है; पर जिसका अभ्यास नहीं होता , उसको करने में बहुत परिश्रम करना पड़ता है, बार-बार असफलता मिलती है, लगता है की यह होगा ही नहीं, थकावट होती है , कभी-कभी निराशा भी होती है; पर सनातन सूत्र कहता है की असंभव कुछ भी नहीं है।मेढ़क और मगरमच्छ स्थलीय प्राणी हुआ करते थे, पर आज वे जलचर की तरह जल में रहते है । हमारे वैज्ञानिक आविष्कार ये बता रहे है की असंभव कुछ भी नहीं है। बस लगता है। यदि आपने कोई लक्ष्य बनाया है, तो मस्तिष्क की विचार और तर्क शक्ति , उस कार्य का मानसिक –शारीरिक अभ्यास आपको मंजिल तक पहुंचा देगा, यदि आप में वहाँ तक पहुँचने की व्याकुलता बनी रहे और धैर्य एवं संकल्प बना रहे।
अब यहाँ कई नियम औए सूत्र सामने आ जाते है –
एक ही लक्ष्य
लक्ष्य की प्राप्ति की प्रबल व्याकुलता
मस्तिष्क का मार्ग दर्शन
मानसिक एकाग्रता (व्याकुलता स्वयं इसमें अभ्यास कराने लगती है)
अभ्यास (बार-बार भजो)
धैर्य की दृढ़ता – यह विश्वास की दृढ़ता के साथ धीरज है।
संकल्प की दृढ़ता – यह ऊपर से ही सम्बन्धित है।
अभ्यास की नियमितता (यह क्रमांक V से ही सम्बन्धित है)
गुरु –
आवश्यक नहीं कि यह कोई मनुष्य ही हो। सिद्धि साधना के प्रभाग में मैंने इस पर विस्तृत प्रकाश डाला है।गुरु पुस्तकें हो सकती है, इन्टरनेट हो सकती है, कोई घटना हो सकती है, कोई भावनात्मक ठोकर हो सकती है, सपने में या ध्यान के प्रयोग के समय कोई दिव्य शक्ति भी हो सकती है।
पर सबसे पहला और महत्वपूर्ण गुरु शिव-पार्वती है। उनकी कृपा के बिना सारे गुरु, सारी उपलब्धियां , सारी शक्ति बेकार है। यह कोई अंधी आस्था का सत्य नहीं है। ये दोनों आपके मस्तिष्क के मध्य में स्थित है और प्रेरणा एवं मार्ग दर्शन यहाँ से मिलता है। यह वह शक्ति है , जो किसी को आइन्स्टाइन बना देती है, तो किसी को महाऋषि गौतम। आपकी कामना के औचित्य का निष्कर्ष देकर आपको भला-बुरा बताने वाला , आपकी कामना की पूर्ती का मार्ग बताने वाला, आपकी समस्याओं को सुलझाकर रास्ता दिखाने वाला , आपको आपकी कामना, व्याकुलता, अभ्यास के अनुसार शक्ति देने वाला महा शक्तिवान अपनी महाशक्ति के साथ यहाँ है। आप अपनी किसी भी कामना की पूर्ती की पूरी प्रक्रिया का अध्ययन कीजिये। आपको इस शाश्वत सत्य का ज्ञान हो जायेगा। यही आप को समस्त स्रोतों का ज्ञान कराता है, जिनके द्वारा आपकी कामना की पूर्ती हो सकती है।
किसी मानवीय गुरु की तलाश और उसकी कृपा प्राप्ति के मार्ग भी यही बताता है।
इसलिए समस्त तन्त्रचार्यों एवं सिद्धि –साधकों ने इन्हें ही पहला और सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुरु माना है।
इन नौ को यद् रखिये और ध्यान योग के द्वारा किसी भी कामना की पूर्ती कीजिये।
एक का अभ्यास दूसरी कामना को भी सरल बना देता है। इसलिए जब हम परा शक्ति पर अभ्यास करते हैं , तो भौतिक कामनाएं भी सरलता से पूरी होने लगती है।
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