कालिका माता के 7 रहस्य जानें और सुख पाएं...
कालिका माता के 7 रहस्य जानें और सुख
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महाकाल की काली। 'काली' का अर्थ है समय और
काल। काल, जो सभी को अपने में निगल जाता है। भयानक अंधकार और श्मशान की देवी।
वेद अनुसार 'समय ही आत्मा है,
आत्मा ही समय है'। मां कालिका की
उत्पत्ति धर्म की रक्षा और पापियों-राक्षसों का विनाश करने के लिए हुई है।
काली को माता जगदम्बा की महामाया कहा
गया है। मां ने सती और पार्वती के रूप में जन्म लिया था। सती रूप में ही उन्होंने 10 महाविद्याओं के
माध्यम से अपने 10 जन्मों की शिव को झांकी दिखा दी थी।
शस्त्र :त्रिशूल और तलवार
वार :शुक्रवार
दिन :अमावस्या
ग्रंथ :कालिका पुराण
मंत्र :ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि
कालिके स्वाहा
दुर्गा का एक रूप :माता कालिका 10 महाविद्याओं में से
एक
मां काली के 4 रूप हैं-दक्षिणा
काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।
राक्षस वध :माता ने महिषासुर, चंड, मुंड, धूम्राक्ष, रक्तबीज, शुम्भ, निशुम्भ आदि
राक्षसों के वध किए थे।
माता कालिका के प्रसिद्ध तीन मंदिर
कलियुग में 3 देवता जाग्रत कहे
गए हैं-हनुमान, कालिका और भैरव। कालिका की उपासना जीवन में सुख, शांति, शक्ति, विद्या देने वाली
बताई गई है। मां कालिका की भक्ति का प्रभाव व्यावहारिक जीवन में मानसिक, शारीरिक और सांसारिक
बुराइयों के अंत के रूप में दिखाई देता है जिससे किसी भी इंसान के तनाव, भय और कलह का नाश
हो जाता है।
हिन्दू धर्म में सबसे जागृत देवी हैं
मां कालिका।मां कालिका को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। 'काली' शब्द का अर्थ काल
और काले रंग से है। 'काल' का अर्थ समय। मां काली को देवी दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से
एक माना जाता है।
विशेष: कालिका के दरबार में जो एक बार चला जाता है उसका नाम-पता दर्ज हो
जाता है। यहां यदि दान मिलता है तो दंड भी। आशीर्वाद मिलता है तो शाप भी। यदि आप
कालिका के दरबार में जो भी वादा करने आएं, उसे पूरा जरूर करें। जो भी मन्नत के
बदले को करने का वचन दें, उसे पूरा जरूर करें अन्यथा कालिका माता रुष्ट हो सकती हैं। जो
एकनिष्ठ, सत्यवादी और वचन का पक्का है समझो उसका काम भी तुरंत होगा।
पहला रहस्य...
दक्ष प्रजापति ब्रह्मा के पुत्र थे।
उनकी दत्तक पुत्री थीं सती, जिन्होंने तपस्या करके शिव को अपना पति बनाया, लेकिन शिव की
जीवनशैली दक्ष को बिलकुल ही नापसंद थी। शिव और सती का अत्यंत सुखी दांपत्य जीवन था, पर शिव को बेइज्जत
करने का खयाल दक्ष के दिल से नहीं गया था। इसी मंशा से उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन
किया जिसमें शिव और सती को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को निमंत्रित किया।
जब सती को इसकी सूचना मिली तो
उन्होंने उस यज्ञ में जाने की ठान ली। शिव से अनुमति मांगी, तो उन्होंने साफ
मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जब हमें बुलाया ही नहीं है, तो हम क्यों जाएं? सती ने कहा कि मेरे
पिता हैं तो मैं तो बिन बुलाए भी जा सकती हूं। लेकिन शिव ने उन्हें वहां जाने से
मना किया तो माता सती को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर वे कहने लगीं- 'मैं दक्ष यज्ञ में
जाऊंगी और उसमें अपना हिस्सा लूंगी, नहीं तो उसका विध्वंस कर दूंगी।'
वे पिता और पति के इस व्यवहार से इतनी
आहत हुईं कि क्रोध से उनकी आंखें लाल हो गईं। वे उग्र-दृष्टि से शिव को देखने
लगीं। उनके होंठ फड़फड़ाने लगे। फिर उन्होंने भयानक अट्टहास किया। शिव भयभीत हो
गए। वे इधर-उधर भागने लगे। उधर क्रोध से सती का शरीर जलकर काला पड़ गया।
उनके इस विकराल रूप को देखकर शिव तो
भाग चले लेकिन जिस दिशा में भी वे जाते वहां एक-न-एक भयानक देवी उनका रास्ता रोक
देतीं। वे दसों दिशाओं में भागे और 10 देवियों ने उनका रास्ता रोका और अंत
में सभी काली में मिल गईं। हारकर शिव सती के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने सती से
पूछा- 'कौन हैं ये?'
सती ने बताया- 'ये मेरे 10 रूप हैं। आपके
सामने खड़ी कृष्ण रंग की काली हैं, आपके ऊपर नीले रंग की तारा हैं, पश्चिम में
छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी,
पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में
द्यूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा
उत्तर-पूर्व में षोडशी हैं और मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देने के लिए आपके
सामने खड़ी हूं।’ माता का यह विकराल रूप देख शिव कुछ भी नहीं कह पाए और वे दक्ष यज्ञ
में चली गईं।
दूसरा रहस्य...
दुखों को तुरंत दूर करतीं काली :10 महाविद्याओं में से
साधक महाकाली की साधना को सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, जो किसी भी कार्य
का तुरंत परिणाम देती हैं। साधना को सही तरीके से करने से साधकों को अष्टसिद्धि
प्राप्त होती है। काली की पूजा या साधना के लिए किसी गुरु या जानकार व्यक्ति की
मदद लेना जरूरी है।
महाकाली को खुश करने के लिए उनकी फोटो
या प्रतिमा के साथ महाकाली के मंत्रों का जाप भी किया जाता है। इस पूजा में
महाकाली यंत्र का प्रयोग भी किया जाता है। इसी के साथ चढ़ावे आदि की मदद से भी मां
को खुश करने की कोशिश की जाती है। अगर पूरी श्रद्धा से मां की उपासना की जाए तो आपकी
सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अगर मां प्रसन्न हो जाती हैं तो मां के
आशीर्वाद से आपका जीवन बहुत ही सुखद हो जाता है।
तीसरा रहस्य...
कालरात्रि और काली :दुर्गा के 9 रूपों में 7वां रूप हैं देवी
कालरात्रि का इसलिए नवरात्र के 7वें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। कालरात्रि माता गले में
विद्युत की माला धारण करती हैं। इनके बाल खुले हुए हैं और गर्दभ की सवारी करती हैं, जबकि काली नरमुंड
की माला पहनती हैं और हाथ में खप्पर और तलवार लेकर चलती हैं।
काली माता के हाथ में कटा हुआ सिर है
जिससे रक्त टपकता रहता है। भयंकर रूप होते हुए भी माता भक्तों के लिए कल्याणकारी
हैं। कालरात्रि माता को काली और शुभंकरी भी कहा जाता है।
कालरात्रि माता के विषय में कहा जाता
है कि यह दुष्टों के बाल पकड़कर खड्ग से उसका सिर काट देती हैं। रक्तबीज से युद्घ
करते समय मां काली ने भी इसी प्रकार से रक्तबीज का वध किया था।
चौथा रहस्य...
जीवनरक्षक मां काली :माता काली की
पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे
अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।
* लंबे समय से चली आ रही बीमारी दूर हो जाती हैं।
* ऐसी बीमारियां जिनका इलाज संभव नहीं है, वह भी काली की पूजा
से समाप्त हो जाती हैं।
* काली के पूजक पर काले जादू, टोने-टोटकों का प्रभाव नहीं पड़ता।
* हर तरह की बुरी आत्माओं से माता काली रक्षा करती हैं।
* कर्ज से छुटकारा दिलाती हैं।
* बिजनेस आदि में आ रही परेशानियों को दूर करती हैं।
* जीवनसाथी या किसी खास मित्र से संबंधों में आ रहे तनाव को दूर करती
हैं।
* बेरोजगारी, करियर या शिक्षा में असफलता को दूर करती हैं।
* कारोबार में लाभ और नौकरी में प्रमोशन दिलाती हैं।
* हर रोज कोई न कोई नई मुसीबत खड़ी होती हो तो काली इस तरह की घटनाएं
भी रोक देती हैं।
* शनि-राहु की महादशा या अंतरदशा, शनि की साढ़े साती, शनि का ढइया आदि
सभी से काली रक्षा करती हैं।
*पितृदोष और कालसर्प दोष जैसे दोषों को दूर करती हैं।
पांचवां रहस्य...
कालिका का यह अचूक मंत्र है।इससे माता
जल्द से सुन लेती हैं, लेकिन आपको इसके लिए सावधान रहने की जरूरत है। आजमाने के लिए मंत्र
का इस्तेमाल न करें। यदि आप काली के भक्त हैं तो ही करें।
मंत्र :
ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर
जिह्वा वाली,
चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं
पान ए मिठाई,
अब बोलो काली की दुहाई।
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से
आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा
से सब काम संभव हो जाते हैं। 15
दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या
शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें।
छठा रहस्य...
रक्तबीज का वध :ब्रह्माजी के शरीर से
ब्राह्मी, विष्णु से वैष्णवी, महेश से महेश्वरी और अम्बिका से
चंडिका प्रकट हुईं। पलभर में सारा आकाश असंख्य देवियों से आच्छादित हो उठा।
ब्राह्मणी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे राक्षस तेजहीन होने लगे, वैष्णवी अपने चक्र, महेश्वरी अपने
त्रिशूल से, इन्द्राणी वज्र से और सभी देवियां अपने अपने आयुधों से आक्रमण कर
रही थीं। राक्षस सेना भागने लगीं।
तब रक्तबीज ने राक्षसों को धिक्कारा
कि वे स्त्रियों से डरकर भाग रहे हैं? रक्तबीज हमला करने आया, तो इन्द्राणी ने उस
पर शक्ति चलाई जिससे उसका सर कट गया और रक्त भूमि पर गिरा। किंतु पूर्व वरदान के
प्रभाव से उस रक्त से फिर एक रक्तबीज उठ खड़ा हुआ और अट्टहास करने लगा। जैसे ही
शक्तियां उसे मारतीं, उसके रक्त से और असुर उठ खड़े होते। जल्द ही असंख्य रक्तबीज सब और
दिखने लगे।
मां चंडिका ने श्रीकाली से कहा कि
इसका रक्त भूमि पर गिरने से रोकना होगा जिससे और रक्तबीज न जन्में। देवी काली ने
कहा कि आप सब इन्हें मारें, मैं एक बूंद रक्त भी भूमि पर न पड़ने दूंगी। और ऐसा ही हुआ भी, जल्द ही सारे नए
रक्तबीज युद्ध में मारे गए। तब रक्तबीज समझ गया कि काली उसे पुनर्जीवित नहीं होने
दे रही हैं, तो वह चंडिका को मारने दौड़ा। तब चंडिका ने उसे मार दिया और काली
ने रक्त को भूमि पर न गिरने दिया। देवता चंडिका की जय-जयकार करने लगे।
सातवां रहस्य...
महाकाली की उत्पत्ति कथा :श्रीमार्कण्डेय
पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अम्बा
के ललाट से हुई थी।
कथा के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों
के आतंक का प्रकोप इस कदर बढ़ चुका था कि उन्होंने अपने बल, छल एवं महाबली
असुरों द्वारा देवराज इन्द्र सहित अन्य समस्त देवतागणों को निष्कासित कर स्वयं
उनके स्थान पर आकर उन्हें प्राणरक्षा हेतु भटकने के लिए छोड़ दिया। दैत्यों द्वारा
आतंकित देवों को ध्यान आया कि महिषासुर के इन्द्रपुरी पर अधिकार कर लिया है, तब दुर्गा ने ही
उनकी मदद की थी। तब वे सभी दुर्गा का आह्वान करने लगे।
उनके इस प्रकार आह्वान से देवी प्रकट
हुईं एवं शुम्भ-निशुम्भ के अति शक्तिशाली असुर चंड तथा मुंड दोनों का एक घमासान
युद्ध में नाश कर दिया। चंड-मुंड के इस प्रकार मारे जाने एवं अपनी बहुत सारी सेना
का संहार हो जाने पर दैत्यराज शुम्भ ने अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी संपूर्ण सेना को
युद्ध में जाने की आज्ञा दी तथा कहा कि आज छियासी उदायुद्ध नामक दैत्य सेनापति एवं
कम्बु दैत्य के चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनी से घिरे युद्ध के लिए प्रस्थान करें।
कोटिवीर्य कुल के पचास, धौम्र कुल के सौ असुर सेनापति मेरे आदेश पर सेना एवं कालक, दौर्हृद, मौर्य व कालकेय
असुरों सहित युद्ध के लिए कूच करें। अत्यंत क्रूर दुष्टाचारी असुर राज शुंभ अपने
साथ सहस्र असुरों वाली महासेना लेकर चल पड़ा।
उसकी भयानक दैत्यसेना को युद्धस्थल
में आता देखकर देवी ने अपने धनुष से ऐसी टंकार दी कि उसकी आवाज से आकाश व समस्त
पृथ्वी गूंज उठी। पहाड़ों में दरारें पड़ गईं। देवी के सिंह ने भी दहाड़ना प्रारंभ
किया, फिर जगदम्बिका ने घंटे के स्वर से उस आवाज को दुगना बढ़ा दिया।
धनुष, सिंह एवं घंटे की ध्वनि से समस्त दिशाएं गूंज उठीं। भयंकर नाद को
सुनकर असुर सेना ने देवी के सिंह को और मां काली को चारों ओर से घेर लिया। तदनंतर
असुरों के संहार एवं देवगणों के कष्ट निवारण हेतु परमपिता ब्रह्माजी, विष्णु, महेश, कार्तिकेय, इन्द्रादि देवों की
शक्तियों ने रूप धारण कर लिए एवं समस्त देवों के शरीर से अनंत शक्तियां निकलकर
अपने पराक्रम एवं बल के साथ मां दुर्गा के पास पहुंचीं।
तत्पश्चात समस्त शक्तियों से घिरे
शिवजी ने देवी जगदम्बा से कहा- ‘मेरी प्रसन्नता हेतु तुम इस समस्त दानव दलों का सर्वनाश करो।’ तब देवी जगदम्बा के
शरीर से भयानक उग्र रूप धारण किए चंडिका देवी शक्ति रूप में प्रकट हुईं। उनके स्वर
में सैकड़ों गीदड़ों की भांति आवाज आती थी।
असुरराज शुम्भ-निशुम्भ क्रोध से भर
उठे। वे देवी कात्यायनी की ओर युद्ध हेतु बढ़े। अत्यंत क्रोध में चूर उन्होंने
देवी पर बाण, शक्ति, शूल, फरसा, ऋषि आदि अस्त्रों-शस्त्रों द्वारा प्रहार प्रारंभ किया। देवी ने
अपने धनुष से टंकार की एवं अपने बाणों द्वारा उनके समस्त अस्त्रों-शस्त्रों को काट
डाला, जो उनकी ओर बढ़ रहे थे। मां काली फिर उनके आगे-आगे शत्रुओं को अपने
शूलादि के प्रहार द्वारा विदीर्ण करती हुई व खट्वांग से कुचलती हुईं समस्त
युद्धभूमि में विचरने लगीं। सभी राक्षसों चंड मुंडादि को मारने के बाद उसने रक्तबीज
को भी मार दिया।
शक्ति का यह अवतार एक रक्तबीज नामक
राक्षस को मारने के लिए हुआ था। फिर शुम्भ-निशुंभ का वध करने के बाद बाद भी जब
काली मां का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तब उनके गुस्से को शांत करने के लिए
भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए और काली मां का पैर उनके सीने पर पड़ गया। शिव
पर पैर रखते ही माता का क्रोध शांत होने लगा।
'जय माता कालका की जय'
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